- नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
( सुफल मटर सस्ती है बाजार में - छिली हुई ताजी मटर 40 रूपये की आधा किलो यानि 80 रू की एक किलो है )
मुरैना/ दतिया/ ग्वालियर/भिंंड / श्योपुर , सरकारें जनता को अच्छी खबर देतीं सुनातीं आईं हैं यह एक परंपरा है , और अच्छे दिन का सपना और वायदा वोट की कीमत में बेचतीं आईं हैं , यह एक रिवाज है ।
जब सोने के दाम में प्रति दस ग्राम ( बाजारू एक तोला दस ग्राम का और पुराना पारंपरिक देश में प्रचलित एक तोला 12 ग्राम का होता है , जब से होलोग्राम वाले आये हैं तब से दो तोला होलोग्राम खा जाता है और यह तोला दस ग्राम का रह जाता है ) के वजन में एक हजार या 500 रू की कमी हो तो मीडिया की सुर्खी बन कर खबर बन जाती है और फ्रंट पेज हेडलाइन होती है , सोने के दामों में जबरदस्त धमाकेदार कमी ,गोया आम आदमी या हर अखबार पढ़ने वाला केवल सोना खरीदने और सोने के दाम पता करने के लिये ही अखबार खरीदता और पढ़ता है ।
चंद प्रतिष्ठित मीडिया को अपवादस्वरूप अगर छोड़ दें तो बाकी बकाया मीडिया को यह पता ही नहीं कि हर अखबार खरीदने पढ़ने वाला साग सब्जी और रोटी तो जरूर ही खाता है ।
साग सब्जी रोटी हर आदमी जन्म से लेकर मरने तक संग संग ढोता खाता है , अपने संग बंधे चिपके और आश्रित परिवार वालों के पेट के लिये , जब वह जन्म के समय पेट साथ लेकर आता है और मरने तक इसी पेट को संग लिये घूमता है , तब तक कोई इसे मेहनत और ईमानदारी की ईंधन की खुराक डाल कर देह की गाड़ी चलाता है , भले ही उसकी स्पीड 500 मीटर प्रति घंटा हो या बेईमानी, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार ए दो नंबर , चार नंबर की औंधी सीधी कमाई का आलीशान मंहगा एयर पेट्रोल का ईंधन भर कर शताब्दी की स्पीड 140 किलो मीटर प्रतिघंटा या हवाई जहाज की स्पीड 600 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से इस नामुराद देह की गाड़ी चलाता या उड़ाता हो ।
बहरहाल ये साफ है कि जैसे हर स्कूटर मोटर सायकल वाले को पैदल चलता आदमी ओछा और छोटा तुच्छ गरीब इंसानी कीड़ा मकोड़ा नजर आता है तो हर कार वाले को स्कूटर मोटर सायकल वाले भी ऐसे ही नजर आते हैं , तो हर और बड़ी गाड़ीयों वालों जैसे बी एम डब्ल्यू, राल्स रायस या एम्पाला वालों को ये कारों वाले भी बड़े तुच्छ और ओछे छोटे कीड़े मकोड़े नजर आते हैं । क्या करिये इंसान की फितरत ही यही है , ग्वालियर के किले पर सास बहू यानि कि सहसबाहू के मंदिर से नीचे देखेंगे तो पूरा ग्वालियर ही , सब ई एम डब्ल्यू , बी एम डब्ल्यू , रेल गाड़ी अताब्दी शताब्दी , राजधानी वगैरह सब के सब ही रेंगते हुये छोटे मोटे तुच्छ और ओछे कीड़े मकोड़े नजर आने लगते हैं , यह फितरत नहीं , हकीकत है , दृष्टिकोण और दृष्टि युक्तिकरण है । और ऊपर लिखे बाकी सब इंसानी अहंकारी फितरत के दृष्टिभ्रम हैं ।
बिल्कुल कुछ ऐसा ही है , मीडिया भी एक दृष्टिभ्रम में रहता और चलता है , और जहां तक संभव हो यथार्थ व सचाई के धरातल से बचता है , वरना सच लिखने का कहने का ( नेता भी इसमें शामिल समझिये) अंजाम यह होगा कि जिनका सच कहा बोला लिखा जाये उनके पास तो फूटी छदाम नहीं है देने को और जो दे सकते हैं या जिनकी कृपा से या वरद हस्त से मीडिया चलता है या विज्ञापन वगैरह या बिना विज्ञापन दो नंबर में कुछ मिल मिलू जाता है वही लोग इस देश का असत्य हैं , गलत काम करने वाले , भ्रष्ट बेईमान और रिश्वतखोर हैं , अब उनकी कृपा ओर पैसे से से ही मीडिया चलना है । तो गरीब आम आदमी तब जाकर एक छपा अखबार या टी वी चैनल पर कुछ खबर पढ़ या देख पाता है । सो मीडिया भी साग सब्जी के दामों की आवाज उठाने के बजाय सोने के ही दाम बतायेगा जिसे आम गरीब आदमी देख सुन तो ले और अखबार या चैनल को बहुत बड़ा माने और समझे , चमक दमक दीखे भले ही सारे कपड़े उतार कर दीखे मगर चमचमाती चीज दीखे , चकाचौंध में आखें चौंधिया जायें तो और देखने पढ़ने वाला बाकी सब गम , परेशानियां और समस्यायें बिसरा दे और ध्यान भूल कर सोने के दामों को राष्ट्रीय चर्चा व महत्व का विषय समझे ।
अगर साग सब्जी जैसे मसले और चीजें टी वी चैनल पर या अखबारों में देखने पढ़ने को मिलेंगी तो चमक दमक का खेल खत्म हो जायेगा और ओछी व तुच्छ चीजें नेशनल लेवल पर दिखने लगेंगी और राष्ट्रीय चर्चा , महत्व और प्रोटेस्ट का आधार बन जायेंगी , दाम यकायक गिरकर बाबाज के लंगोट के माफिक कम और कम होते जाकर ऐसे धड़ाम से गिरेंगें जैसे लंगोट की पट्टी अचानक से खुल कर बिकनी की तरह फस्स् और सररर करती खिसक गई हो । गोया किसान से खरीदी कोई चीज पांच रूपया प्रति किलों केवल दह रूपये प्रतिकिलो के दाम पर आ जायेगी ।
मतलब ये कि जब बेचने वाला ही एक रूपये प्रतिकिलो के मुनाफे पर धंधा करेगा तो , बाकी दल्ले , नेता , अफसर , और लग्गा तग्गा मसलन मीडिया और .... वगैरह वगैरह कहां से पलेंगें , कहां से खायेंगें । उसी चीज को जब पचास रू प्रतिकिलो बेचा जायेगा तो बेचने वाले को भी पांच रू मुनाफे के और बाद बाकी , चुनाव टाइम पर नेताओं और पार्टीयों को चंदा , मंडी में दूकान या ठेला लगाने की रोजाना की नगरनिगम या नगरपालिका की रोजनदारी वसूली , पुलिस वाले बीट प्रभारी का लेन देन, और बीच बीच में बीट प्रभारी के बजाय फीती लगाये आ जाने वाले सिपहिया , जब तब पत्रकार और न जाने कितनों के हिसाब किताब के बाद अगर पांच रू प्रति किलो किसान से खरीदी चीज कोल्ड स्टोरेज में डाल कर बी एच सी यानि बैंजीन हैक्सा क्लोराइड और मैलाथियान तथा भैंस का इजेक्शन लगाकर लंबी मोटी कर बढ़ाई गईं सब्जियां जैसे लौकी , तोरई , कद्दू , बैंगन , खीरा और सेम आदि इन सबके खर्चों को निकाल कर अपने आप ही दाम उस पांच रू का पचास रू हो ही जाता है ।
मतलब साफ है ,कोल्ड स्टोरेज किसान को भी खा रहे और लूट रहे हैं तो जनता यानि आम आदमी को भी । एक बार मुरैना में हजारों टन आलू कोल्ड स्टोरेजों को बाहर सड़क पर यानि हाई वे पर फेंकना पड़ा था , ऐसा तब हुआ जब नया आलू किसान ले आया और वह कोल्उ स्टोरेज वाले आलू से पच्चीस गुना सस्ता था । लिहाजा कोल्ड स्टोरेज में आलू रखने वाले व्यापारियों ने कोल्ड स्टोरेजों का मासिक किराया देना बंद कर दिया और नया माल ( आलू ) खरीद कर कोल्ड स्टोरेज ले जाना शुरू कर दिया ,बाजार में उस समय आम आदमी को कोल्ड स्टोरेज वाला आलू चालीस से पैंतीस रू प्रति किलो बेचा जा रहा था , मगर किसान का नया आलू मंडी में पांच रू प्रतिकिलो और मोहल्लों घरों में वह आठ रूपये और सात रू प्रतिकिलों के दाम पर हाथठेले वालों द्वारा बेचा जाने लगा तो , ऐसी सूरत में वही चालीस पैंतीस रू प्रतिकिलो वाला कीटनाशक दवायें मिला हुआ हजारों टन आलू सड़कों पर फेंकना पड़ा ।
उक्त घटनाक्रम से जाना जा सकता है कि सिस्टम में दोष कहां पर है , अलबत्ता कोल्ड स्टोरेजों की स्थापना इसलिये की गई थी कि किसान अपना माल यानि फसल उसमें रख सके और साल भर साग सब्जी आम जनता को हर मौसम में मिल सके , इसलिये नहीं कि दलाल , व्यापारी और विक्रेता , किसी किसान से सस्ते में माल खरीद कर सालभर मुनाफाखोरी , ब्लेकमार्केटिंग के लिये जमाखोरी कर सकें ।
किसी किसान ने अपना माल कोल्डस्टोरेज में रखा होता तो न कभी साग सब्जी के दाम बढ़ते और किसान आज तक इतना गरीब , परेशान और मजबूर व लाचार ही नहीं होता । सरकार अगर मंडी में फसल खरीदने और तुलाई के लिये किसानों का पंजीयन कर एस एम एस से नंबर लगवाती है कि केवल किसान ही बेच पाये अन्य कोई दलाल या व्यापारी नहीं ,तो फिर कोल्ड स्टोरेजों और बेयर हाउसों के लिये केवल किसान ही इनमें अपनी फसल की उपज रख सके , यह अनिवार्य क्यों नहीं करती , किसानों की भी समस्या हल होकर परेशानी खत्म हो जायेगी , किसानों के खाते की फसल की मेहनत की , लागत की मुनाफे की समस्या ही समाप्त हो जायेगी और आम जनता को भी पांच रू की चीज पचास रू प्रतिकिलो में लेने की फर्जी व कृत्रिम मंहगाई से हमेशा के लिये मुक्ति मिल जायेगी , किसान भी चैन से अपना परिवार पाल सकेगा और दो रोटी शान व इज्जत से खा सकेगा और आम आदमी भी जो आज केवल साग सब्जी के दाम पूछ कर मन मसोस कर लाचार होकर रह जाता है और देशी घी की तरह सब्जी वाले के ठेले के दर्शन कर पाव भर , या आधा किलो एकाध चीज कभी कभार खरीद कर रह जाता है और हर चुनाव के बाद हर सरकार से आस लगाता है कि अब दाम कम हो जायेंगें और हम चैन से ख पी सकेंगें ।
सरकारी साग रोटी खा रहे नेताओं और अफसरों को यह सारी बातें समझ नहीं जायेंगीं क्योंकि उनका समझदानी का लेवल हाई ( गोल्ड यानि सोने के लेवल ) रहता है और ये साग सब्जी , आम आदमी वगैरह जरा लो लेवल की बातें हैं , सड़क पर पैदल चलने वाले लोगों के लेवल की बातें हैं ।
दूसरी भाषा में कहें तो ..... रोजाना खपत होने वाली चीजों को नकदी की यानि रोजाना मुनाफा देने वाली चीजें कहा जाता है , मसलन ... माचिस , नमक , साग सब्जी , तेल , दाल , मसाले ( हर कोई नहीं डालता) आदि रोजाना बिकने , खपत होने वाली चीजें हैं और हर आदमी के इस्तेमाल की चीजें हैं , अगर यही आम आदमी से दूर हो गयीं और बेतहाशा बेलगाम मंहगीं इसी तरह ही रहीं और होतीं रहीं तो ...... भई हम तो इसी तरह लिखते रहेंगें , और ग्वालियर टाइम्स इसी तरह प्रकाशित प्रसारित करती रहेगी ।