पत्ते पत्ते पर लिखा है उस प्रभु का नाम , हर बॉडी और हर डेड बॉडी पर लिखा है कोरोना के खाने का नाम , तेरे हर अंग पर भी लिखा है मरों को लूटने वाले तेरे हर काम का अंजाम, बस इंतजार कर मुनासिब वक्त आने का , तेरे हर काम का हिसाब रखा जायेगा , जरा वक्त तो आने दे , मासूमों के लहू के हर कतरे का बड़ा बेहिसाब तेरा हिसाब किया जायेगा
-
नरेन्द्र सिंह तोमर ‘’आनन्द’’
पिछले अंक से आगे ………
दूसरा - भाग
यद्यपि हमने सोचा था कि इस समसामायिकी आलेख को दो किश्तों में समाप्त कर
देंगें लेकिन विषय बृहद और विषय सामग्री विस्तार से यह संभव नहीं लगता लिहाजा जहां
तक विषय चले वहॉं तक इसकी विषय सामग्री चलेगी , इसलिये यह अब दो से अधिक भागों
में आयेगा और केवल आखरी भाग पर ही अंतिम किश्त लिखेंगें – नरेन्द्र सिंह तोमर ‘’आनंद’’ एडवाकेट
अभी पिछले अंक में कोरोना पॉजिटिव या संक्रमण के जांच के तरीकों पर इस
आलेख में चर्चा कर रहे थे ।
उपकरणीय अन्य जांचें और प्रयोगशाला जांचें – हमें इस विषय को आगे ले जाने
से पहले एक तथ्य विशेष रूप से स्मरण रखना होगा कि कोई भी बेहतरीन मेडिकल उपकरण या
बेहतरीन प्रयोगशाला तीन विशेष लोगों से ही बन सकती है – एक बेहतरीन चिकित्सकीय
ज्ञान रखे वाला डॉक्टर , दूसरा एक बेहतरीन इंजीनियर और तीसरा एक बेहतरीन साइंस
यानि विज्ञान का विद्वान ।
विज्ञान के विद्वान में भी दो स्ट्रीमों का सम्मिश्रण या दो अलग अलग लोग
जिसमें एक गणित स्ट्रीम का और दूसरा
बायोलॉजी यानि जीव विज्ञान स्ट्रीम का स्पेशलिस्ट होना चाहिये तब जाकर एक बेहतरीन
मेडिकल उपकरण या लैब तेयार हो पाती है । उसे बाद में पैरामेडिकल विशेषज्ञ या
विज्ञान स्ट्रीम के लोग ऑपरेट या संचालित करते हैं , लेकिन निर्माण की बुनियाद से
लेकर प्रोटोटाइप बनाने और उसे विकसित कर असल मशीन या उपकरण बनाने या लैब तैयार
करने में तो उपरोक्त तीन ही काम कर पायेंगें , वर्तमान में इन तीनों का
एकसाथ बखूबी संयोजन व उपयोग भारत में किसी भी मेडिकल मशीन बनाने में या उपकरण या
लैब तैयार करने में नहीं किया जाता है और केवल दो लोग ही इनमें से चुने जाते हैं
जिससे मशीनें व उपकरण उस दक्षता व क्षमता के तथा एक्यूरेसी के भारत में नहीं बनते
और न मेडिकल लैब ही उस दक्षता व क्षमता की होती है जो कि भारत बना सकता है मगर
अयोग्य व अनुभवहीन जनप्रतिनिधियों और राजनेताओं की सत्ता लोलुपता और भ्रष्टाचार
प्रियता के कारण ऐसा भारत में नहीं होता या हो पाता । इसकी बहुत सी वजह और कारण
हैं मगर वे इस आलेख का विषय नहीं हैं ।
अगला परीक्षण या जांच स्वैब का परीक्षण , रक्त परीक्षण , मल मूत्र परीक्षण ,
प्यूबिक हेयर
परीक्षण , अंदरूनी
चोट आदि परीक्षण , बाहरी चोट आदि परीक्षण , आमाशय या आहार संबंधी परीक्षण , अन्य हड्डी संबंधी, सीमन टेस्ट तथा
अन्येन्य प्रकारेण परीक्षण आदि । ये सभी परीक्षण इस आलेख का विषय नहीं हैं इनका हम
केवल इस संदर्भ में प्रयोग करेंगें कि क्या परीक्षण वर्तमान में किये जा रहे हैं
और क्या क्या जरूरी परीक्षण छोड़े जा रहे हैं ।
वर्तमान में कोरोना पॉजिटिव टेस्ट करने के लिये स्केनिंग के बाद स्वैब
टेस्टिंग करने का रिवाज अपनाया जा रहा है जिसमें उल्टी , कफ , थूक और लार आदि के जरिये होने
वाला स्त्राव या प्राप्त कर इनकी जॉंच करने को स्वैब टेस्टिंग कहा जा रहा है । और
इसका परिणाम में कोरोना वायरस की मौजूदगी का अनुमान लगया जाता है या पुष्टि कर दी
जाती है ।
इससे आगे कुछ नहीं ,जो यह पुष्ट करे कि
क्या वाकई किसी को कोरोना है या नहीं ।
किसी कोरोना रोगी के रक्त की पहले
क्या स्थिति थी , अब क्या है और उसके डिस्चार्ज के समय या श्मशान भेजते समय क्या स्थिति थी ,इस जांच की कोई
व्यवस्था अभी तक भारत में नहीं है । इसलिये मौत की वजह या ठीक हो जाने के बाद इलाज
पश्चात उसके प्रतिक्रियात्मक लक्षणों और पश्चातवर्ती रक्त लक्षणों के बारे में कोई
भी जांच रिपोर्ट उसकी मेडिकल हिस्ट्री में नहीं होती लिहाजा न तो इसके बगैर किसी
भी शख्स में न तो कोरोना की पुष्टि की जा
सकती है और न इससे इंकार कर नकारा जा सकता है ।
स्वैब टेस्टिंग मात्र खांसी बलगम आदि की जांच करने मात्र का एक सरल सा
उपाय और जांच है , जिसके भी स्वैब में खांसी , फ्लू ( बुखार ) , कफ और छींक के साथ निकलने
वाले छोटे मोटे जीव जंतु होंगे उस हर आदमी को यह टेस्ट खांसी जुकाम कफ से पीड़ित
ही बतायेगा और बलगम भी मौजूद है तो गंभीर पॉजिटिव ही बतायेगा । इससे अधिक यह टेस्ट
कुछ और नहीं बताता , कोरोना वायरस का डिटेल या सैंपल अभी तक न तो भारत के पास है और न विश्व के
किसी अन्य देश के पास जिससे मिलान करके किसी को कोरोना होना साबित किया जा सके ।
जबकि इससे पूर्व पक्षियों के बर्ड फ्ल्यू , एड्स के वायरस ( एच आई वी )
तथा अन्य वायरस जन्य बीमारीयों के नमूने भारत सहित विश्व के अन्य देशों के पास हैं
और उनसे मिलान के पश्चात ही किसी में इनकी पुष्टि कर दी जाती है । मगर कोरोना के बारे में जो रहस्य है वह यह है
कि होती सबको केवल खांसी बुखार दर्द सर्दी और जुकाम ही है मगर कहा यह जाता है कि
हर 15 – 20 दिन में यह वायरस अपना रूप बदलता है मतलब बीमारी के लक्षण बदल देता है
या बीमारी ही बदल देता है । आश्चर्य यह है कि रोगी की न तो कभी बीमारी बदलती है और
न कभी उसका जांच का तरीका या सिस्टम बदलता है , ऐसा ठोस पुख्ता और अद्वितीय
जांच सिस्टम है कि रूप बदल रहे कोरोना वायरस के हर रूप को एक ही तरीके से पकड़ता
रहता है , जबकि
तार्किक तरीका यह है कि जब जब वायरस रूप बदले तो उसके हर बहुरूपिये रूप की एक
तस्वीर खीच कर विश्व के सभी देशों के हर अस्पताल को भेजनी चाहिये और उसके उस रूप
को पकड़ने और पहचानने का तरीका और बदले जाने वाले टेस्टिंग मैथड को भी साथ भेजा
जाना चाहिये जिससे टेस्ट का तरीका और मिलान करके अच्छी जांच रिपोर्ट के साथ मरीज
के नाम के आगे लिखा जाये कि उसे कोरोना के कौनसे रूप के किस वर्जन ने कब किस दिन
जकड़ा , कब
से वह उसके अंदर घुसा और कितना भीतर तक घुस चुका है और क्या इसके बावजूद उस कोरोना
वायरस का अन्य कोई रूप या वर्जन भी उसके अंदर आ सकता और घुस सकता है या नहीं । और यह
रूप टाइप क्या गड़बड़ीयां और खलबलियां उस मरीज के शरीर में मचायेगा और उसे क्या क्या
ऐहतियातें और परहेज बरतने होंगें , वह बिना खाये पीये जिंदा रहे या खा पीकर मरे , ये सब जिक्र तभी संभव
होंगें जब हर बदलते रूप का हर डिटेल हर अस्पताल , हर डाक्टर , हर नर्स और हर मरीज और
उसके घरवालों को पता हो ।
................ शेष अगले अंक में जारी ..............
– नरेन्द्र सिंह तोमर ‘’
आनंद’’
एडवोकेट
( कोराना में वीरगति पाकर शहीद
हुये लोगों के लिये, उन शहीदों की ओर से भारत के सिस्टम के नाम )
हम राह की कुचली
हुई धूल ही सही मगर कीचड़ बनाओगे तो हममें ही फंस जाओगे , जर्रा ही सही और हम लटके हुये झाड़ फानूस
ही सही ,हमारी जांच बीमारी
इलाज और मौत डैड बॉडी दौलत में तौलने वालो तुम अमर आफताब ही बने रहो , जो जमीं पे आओगे तो हमारे आसपास ही कुचले
जाओगे । हमारी दौलतें बिंकी , घर जेवर
मकान दूकान तलक बिके , बीवी मिटी तो कहीं
बच्चे भी मिटे , मिट गईं खुशियां, शानो शौकत और रिश्तेदारीयां , तुमने मजबूरियों का जाल कुछ इस कदर बुन दिया
कि न मौक्ष न बेटे का कंधा न नाती का श्मशान तक साथ नसीब हुआ , न चिता पर भी मेरी कैद खोली पॉलीथीन के कफन
से , जिंदा तो जिंदा मुझ मुर्दे को भी
लूट लिया , मेरी अंगूठी गायब
, मेरी झुमकियां गायब , पायलें भी गायब तो मरी तो कही आबरू भी गायब
हुई अस्पतालों में । जीते जी न मिलने दिया तुमने अपनों से और अकेले मार कर तुमने कुछ
ऐसा हाल कर दिया मेरा कि देखूं कैसे कि ऑखें भी गायब कर दी तुमने , बोलू कैसे दांत भी गायब तो अब जबड़ा भी गायब
हो गया मेरा , अब कुछ खा पी कर
पेशाब कर आता पूरी जिंदगी की तरह , मगर क्या
करूं ऐ लूट और जुल्म के सितमगारो लीवर भी मेरा गायब , किडनी भी मेरी गायब है , वह जो लेटी है मेरे पड़ोस की अर्थी पर उसका
मंगलसूत्र गायब क्या किया कि उसका सुहाग भी गायब हो गया , अब जितने भी हैं यहां सब पॉलीथीनों में पैक
पड़े हैं , उनके दिमागो दिल
में अपने घर के बसे हैं , इंतजार
में बस उनके हाथ जल पाने की , जल की दो
बूंदों को अटके पड़े हैं , काश कोई तो आयेगा जो आजाद इन पॉलीथिनों से करेगा , मंदिरों की घंटियां कुछ मंत्र भी सुनायेगा
, मस्जिदों की अजान सुनने को यहॉं सैकड़ों
इंतजार कर रहे , और हम सब उसकी राह
देख रहे , कोई होगा जो आयेगा
, अपने पिता को बहन को कैद में डालने
वाले कंस से कोई कृष्ण आकर हमें छुड़ायेगा , बस टकटकी
है जिनकी आंखें बच गईं बाकी को वही हाल ए नजर सुनाते हैं , बिना आंख वालों को नजर वाले और बिना किडनी
लीवर वालों को यहॉं कुछ मरे डॉक्टर रोजाना कुछ ऑक्सीजन और सांसें चुरा कर देते हैं
, और फिर हम सब मिलकर राह तकते हैं
, मेरे भारत मेरे कृष्ण हम तेरी राह
तकते हैं ।
- नरेन्द्र
सिंह तोमर ‘’आनन्द’’